२८९ ॥ श्री बिष्णु भगवान का पद्म ॥
चौपाई:-
पद्म कहैं सतगुरु करि भाई। श्री हरि सुमिरो तन मन लाई।
ध्यान प्रकास समाधि में जाई। कर्म भर्म सब देय मिटाई।
एक तार धुनि नाम सुनाई। झाँकी युगुल सामने छाई।
हरदम अनहद बजै बधाई। सुर मुनि मिलैं लिपटि उर लाई।
अमी पान कीजै सुखदाई। बरनत बनै न हिय हर्षाई।५।
साँपिन जागि गगन को धाई। सब लोकन में देय घुमाई।
छइउ चक्र घूमै भन्नाई। सातौं कमल खिलैं फर्राई।
सतगुरु करि जो जियति कमाई। कहैं पदुम सो निज पुर जाई।८।
दोहा:-
दिब्य रहौं कुम्हिलाँव नहिं, हरि किरपा बसुयाम।
कहैं पदुम सुमिरन करूँ, हर दम हरि को नाम॥