३२२ ॥ श्री चौपट शाह जी ॥
रसना राम नाम में माती।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छूटै द्वैत कि गाती।
हाड़ हाड़ रग रग सब रोंवन कैसी धुनी सुनाती।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै जहां अवाज न जाती।
अमृत पिओ देव मुनि दर्शैं साज बजैं बहु भाँती।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि की छबि सन्मुख छाती।
चौपट शाह कहैं जिन भाई तन मन प्रेम से काती।
ते प्रकाश पुर जाय के बैठै जहँ घृत दिया न बाती।८।