३३५॥ श्री कोढ़ी शाह जी॥
पद:-
पहले बहुत नीक लागत है यारों पाप कर्म करने में।
बीज जामि कै बृक्ष होत फल लागत दुख धरने में।
पाकैं फूटैं गिरैं खाय को गन्ध उठै सरने में।
बैठव उठव जात ह्वै भारु नेक न कल परने में।
गाँव परोस औ घर के कहते सुक्ख इन्हैं मरने में।५।
मुश्किल से कोइ पास में आवत पानी मुख डरने में।
सब को हड़ै घिना तब तन की ऊब स्वाँस भरने में।
कोढ़ी साह कहैं सतगुरु करि भजो न भय तरने में।८।