३४५ ॥ श्री रघुपति सिंह जी ॥
पद:-
बांधो राम नाम का हीरा।
सतगुरु करि जप भेद जानि लो जियति मिटै भव पीरा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख सिय रघुबीरा।
अनहद सुनो पिओ घट अमृत सागर भरे गंभीरा।
तन मन प्रेम से सुर मुनि भेटैं झरै दृगन ते नीरा।५।
करि विश्वास सत्य को साधै दीन रहै धरि धीरा।
सोरह सहस दैत्य माया दल पकड़ि तिनहिं सो चीरा।
दोनो दिशि जय जय हो ताकी बाजै सूर कबीरा।
उमा लाय वा के मुख देवैं नित ताम्बूल क बीरा।
शारद कमला पंखा मुरछल से करैं सुभग समीरा।१०।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन पहुँचि जाय प्रभु तीरा।
पढ़ि सुनि गुनि जे सुमिरन करते तिन के धन्य शरीरा।१२।