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३४७ ॥ श्री कमलेश्वरी सिंह जी ॥


पद:-

भजन बिन कागा फोरि खाँय आँखी।

अन्त समय कोइ काम न देहैं जब यम पकड़ि के झाँखी।

वा के संग में जंग करौ किमि पड़े रहौ जिमि माखी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो सुर मुनि कहा सो भाखी।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय जहँ सुधि बुधि हो राखी।५।

सुर मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद लेव अमी रस चाखी।

सूरति अपनी शब्द पै धरि कै जियति देय जो लाखी।

सो तन तजि कै जाय अचलपुर जग त्यागै जिमि पांखी।

या विधि में कोइ संशय नाहीं वा के हम हैं साखी।

चारि पदारथ नाम देत हैं सब के शिर की ताखी।१०।