३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (५)
पद:-
शंका चिंता संघै लागी भजन एकान्त में करते हैं हो।
सतगुरु से जप भेद न जान्यौ मन के साथ बिचरते हैं हो।
पढ़ि सुनि लिखि कंठस्थ लीन करि कोरा ज्ञान पसरते हैं हो।
रहै ठगाय भुलाय जगत में या बिधि पेट को भरते हैं हो।
शिष्य करैं स्वामी बनि झूठे तन तजि नर्क में पड़ते हैं हो।५।
मीठे बैन सुनाय रिझावैं हाथ शीश पै धरते हैं हो।
नैन मूँद कर आशिष देवैं कारज सिद्ध सकरते हैं हो।
गाजी कहैं जाल यह फैली अंधे जीव पछरते हैं हो।८।