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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१६)


शेर:-

जीव तरता भाव से बिन भाव के तरता नहीं।१।

गाज़ी कहैं सुमिरन कि बिधि सतगुरु से लै करता नहीं।२।

जब प्रेम हरि में है हमारा चोर तन के क्या करैं।३।

गाज़ी कहैं हम तो बिलग वे देखि देखि जरा करैं।४।