३८५ ॥ श्री ग़रीब शाह जी ॥
दोहा:-
राम नाम नौका भई, सूरति भई पतवार।१।
जीव बैठि तामे गयो, खेय भयो भव पार।२।
राम नाम नौका भई, सूरति ह्वै गई बांस।३।
जीव बैठि ता में गयो, खेय कियो दुख नाश।४।
पद:-
सुनिये राम नाम का गाना।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो, तन मन प्रेम लगाना।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै, सुधि बुधि जहां भुलाना।
र रंकार की धुनि खुलि जावै रोम रोम गलताना।
यह गाना सुर मुनि जब जाना बनि बैठे मस्ताना।५।
हर दम हर शै में यह बोलत ऐसा है तर्राना।
अनहद बाजा घट में बाजै अमृत करिये पाना।
नागिन उठी चक्र षट सोधें सातों कमल खिलाना।
सुर मुनि सब से भेंट होय नित हृदय से हृदय लगाना।
सिया राम की झाँकी अद्भुत लखि लखि कै मुसक्याना।१०।
चारि ध्यान चारै हैं अजपा तेरह त्यागि बखाना।
आठ परा औ सात ज्ञान विज्ञान चारि का थाना।
तीनि मंत्र औ तीनि जंत्र ग्यारह भक्ती परमाना।
परा मध्यमा पयशंती बैखरी़ जाप बतलाना।
सोऽहं का आधार यही है ओंकार का प्राना।१५।
मंत्र परम लघु महा मंत्र वही बीज मंत्र सुख साना।
अगम अपार अकह या की गति को करि सकत बखाना।
सब कछु इसी से परगट जानो इसी में फेरि समाना।
पाँचौ मुद्रा जौन कहावैं सब पर यह भन्नाना।
पढ़ि सुनि गुनि कै लागौ भक्तों तब होवे कल्याना।२०
कथनी कथना है यह सपना बिरथा गाल बजाना।
यह विद्धता गई दिखलाई किमि समझै विद्वाना।
स्वामी रामानन्द गुरु मम पार ब्रह्म भगवाना।
उनकी सरबरि कौन सकत करि जिनका रचा जहाना।
पढ़े को बिद्या से समझावैं छीनि लेंय अज्ञाना।२५।
मूरख को संख: ध्वनि करि के खोलैं आँखी काना।
सब का धाम एक है मानो ता में अगणित खाना।
भांति भांति के लगे बगीचे फूले फूल महाना।
उड़ैं तरंगैं बहु प्रकार की तन मन रहै जुड़ाना।
सब से ऊँचा है सिंहासन सिया राम स्थाना।३०।
तहँ पर हर दम राजि रहै हैं चहुँ दिशि भक्तन थाना।
कहैं गरीब शाह चलि बैठो भजन करो नर बाना।
राम नाम ही सार है और बात बेकार।
कह गरीब सतगुरु करो ह्वै जावै निस्तार।
बिन सतगुरु के है कठिन, जाना भव के पार।
कह ग़रीब सुर मुनि कह्यौ, वेद पुरान पुकार।३६।