३९६ ॥ श्री मक्का शाह जी ॥
(मुकाम शाहजहां पुर)
पद:-
हे हरि! हम जीते तुम हारे।
आपै सृष्टि बनाय के स्वामी हौ सब खेल प्रचारे।
आपै सेय सयान दीन करि आपै साजि संवारे।
आपै घट घट के हो बासी आपै हो रखवारे।
आपै निर्गुन आपै सर्गुन आपै सब से न्यारे।५।
आपै मारैं आप जियावैं आपै गोद बिठारें।
जीवन का दुख लखि लखि स्वामी मम उर होत दरारे।
आप तो दीन दयालु कहावत बेचि दया कहां डारे।
करुना सागर आप कहावत क्या करुना को फारे।
आप तो कर्म भर्म सब मेटत सुर मुनि बेद पुकारे।१०।
सब आपै के अंश कहावत राव रंक हत्यारे।
धर्म धुरन्दर आप कहाइ के सोंवत पांव पसारे।
या में जीव की लागु कौन है बोलत नहीं चुप मारे।
परम स्वतंत्र आप हैं स्वामी सब मरज़ी में तुम्हारे।
साधक यह पद पढ़ि सुनि गुनि के बोलैं बचन संभारे।१५।
नाहीं तो फिर धोका खावैं नर्क में जावैं डारे।
हमरी मत कोइ करे बराबरि हम बिधि लेख को टारे।
हर दम प्रभु संग हंसै औ खेलैं कबहुँ गयन न मारे।
यह पद सीधा है नहिं उलटा जानहिं श्री गुरु द्वारे।
मक्का शाह देंय यह अरज़ी आप के परम दुलारे।२०।