३९८ ॥ श्री खर्च शाह जी ॥
पद:-
धन झूठा गाड़ि के मत धरना जो आवै उसको ख़र्च करो।
शुभ काम में भक्तों लगा लगा तन मन अपना अब फ़र्च करो।
संग्रह में ताकत है इतनी आसक्ती पकड़ि दबा लेती।
जप पाठ औ पूजन कीर्तन में मन लगै नहीं बिगड़ी नेती।
फिरि मुक्ति भक्ति मिलिहै कैसे जब पकड़ि जकड़ि माया लेगी।५।
तब उठैं तरंगैं बिविधि भांति बस वही घुन घुना कर देगी।
हर दम तुम उसे वजाओगे नाचौगे उसके चक्कर में।
हंसि हंसि कै तब वह देखैगी फंसि गयो उसी के मक्कर में।
सतगुरु करि सूरति शब्द पै दो जो सारे दुख को नाश करै।
कहै खर्च शाह तन होय सुफ़ल फिर अन्त में प्रभु के पास करै।१०।