४१८ ॥ श्री कथरी शाह जी ॥
गीता मानस गुरु करि जाना। ताके खुलि गये आँखी काना॥
ध्यान प्रकाश समाधि भुलाना। राम नाम की मिलि गई ताना॥
सुर मुनि के संघ हरि यश गाना। अनहद सुनि अमृत को पाना॥
नागिन चक्र कमल जग जाना। बिबिधि भाँति की महक उड़ाना॥
अन्त त्यागि तन निज पुर जाना। छूटै चौरासी चकराना।१०।
प्रेम भाव भूखे भगवाना। जै जै जै प्रभु कृपा निधाना॥
सन्मुख रहैं श्री भगवाना। जिन धाप्यौ यह सृष्टि महाना॥
बनि धूर धूर कथरी़। तब जाय जीवन सुधरी॥
आसिष औ श्राप रसरी। दे त्यागि खेल बिगरी॥
अनमोल नाम मुन्दरी। पहनो सुफल हो गुदरी।२०।