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४६१ ॥ श्री कुरबान शाह जी ॥


दोहा:-

परमेश्वर के भजन बिन, मिलै न कबहूँ शान्ति।

कुरबान शाह कह हर समय, घेरे रहती भ्रान्ति।

दाया पापिन पर करैं, भक्तन पर हरि प्रेम।

कुरवान साह कह नारि नर सुमिरौ करि नित नेम।

झूठा अपना मतलबी, औ दरिद्र कंजूस।५।

साधक इनका संग करै, तो होवै बनहूस।

इनकी संगति जौ करै, अन्त में नरकै जाय।

नाना भांति के कष्ट तहँ, रोये नहीं सेराय।

साधक इनसे अलग हो, तब होवै कल्यान।

कुरबान शाह कह मानिये,सुर मुनि कीन बखान।१०।

तप धन ज़ाहिर मत करो, या से होती हानि।

कहैं शाह कुरबान सब, सुर मुनि की यह बानि।

चोर चूहरी लूट लें, रहै न तप कछु पास।

पहूँचि सकौ नहिं निज वतन करै दोऊ दिसि नास।

शान्ति दीनता लेहु गहि, सतगुरु बचन को मान।

तब दोनों दिसि जाय बनि, कहैं शाह कुरबान।१६।