॥ श्री कृष्ण जी की प्रार्थना ॥(३)
सुनी थी जैसी सिफ़त मैं बृज की वो बात अपने बचश्म ढारी।
है हुस्न खूबी मलक फलक में श्री कृष्ण राधे की सब से न्यारी।
कदम हैं तिरछे अधर पै मुरली मधुर मधुर धुनि सुनाते प्यारी।
मुस्क्यान ऐसी अजब ग़जब की चमकते दन्दां हैं नूर जारी।
इशारा अबरू का कर के मुझ पै चलाया जादू का तीर भारी।५।
लगा जिगर में तड़फते देखा उठाया चट से जगत बिहारी।
लगा के सीने लिया है बोसा कहैं क्या अंधे जबां है हारी।
ख्याल जिसका जमा है जिसपर वही तो उसको सकै निहारी।८।
पद:-
वेदशास्त्र उपनिषद संगिता औ पुरान गीता रामायण।१।
अंधे कहै बिना अनुभव के पढ़ि सूनि के बांटत हौ बायन।२।
सतगुरु करि के भेद जान लो जियति जाव ह्वै ब्रह्म परापन।३।
सुरमुनि सक्ती सब युग वरन्यो वही वाक्य हम सब हित गायन।४।