॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
अंधे कह जियतै मुक्त भक्त ह्वै जाता।
धुनि ध्यान प्रकास समाधि में जाय समाता।
शुभ अशुभ कर्म जरि जाँय द्वैत बिलगाता।
सिय राम की झाँकी हर दम सन्मुख छाता।५।
अनहद क्या घट में बजै सुनै मुसक्याता।
अमृत का नित हो पान ताल उमड़ाता।
नागिनि जागै सब लोकन में फिरि आता।
सुर मुनि सब आवैं मिलन हृदय लपटाता।
आर्शीवाद दें भयो नाम के ज्ञाता।१०।
नहिं आवो तन को त्यागि जगत में ताता।
बाँटो दीनन लखि दान कहावो दाता।
यह सूरति शब्द का भजन जगत बिख्याता।
निर्गुण सर्गुन दोउ रूप क बोध कराता।
हरि हर ने मो को दियो भेद बतलाता।
है सहज समाधी यही प्रेम में माता।१६।
पद:-
सतगुरु करि जो कोइ चेता सो भया नाम का नेता।१।
शुभ अशुभ कर्म दोउ रेता, सुर मुनि करते नित हेता।२।
परकास धुनी लै लेता। सनमुख झाँकी करि लेता।४।
अनहद सुनि अमृत पेता। रिन चुक्यो गर्भ क जेता।६।
कुंडलिनी चक्र समेता। कमलन सीधा करि देता।८।
तन तजि जहँ कृपा निकेता। सुख शाँति से निजपुर सेता।१०।
जो बोये पाप क खेता। सो नर्क जाय या प्रेता॥
जो दया धर्म करै जेता। अंधे कहैं फल ले लेता।१४।
पद:-
राम नाम गुण राम न गाये।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै तन मन से जो ध्याये।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि हर शै से सुनि पाये।
अनहद बजै पियै घट अमृत कूप भरा हहराये।
नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल खिलाये।५।
सिया राम की झाँकी सन्मुख हर दम वाके छाये।
गद गद कंठ बोल नहिं फूटै रहि रहि शीश हिलाये।
अंधे कहैं अन्त साकेतै चढ़ि विमान पर जाये।८।
पद:-
ईश्वर अंश जीव अविनासी। चेतन अमल सहज सुखरासी।
सतगुरु करै भजै तन मन ते सहजै हो सुख रासी।
अनहद सुनै पियै घट अमृत टमकै बारह मासी।
सुर मुनि आवैं हरि जस गावैं बैठें चहुँ दिसि गांसी।
नागिनि जगै चक्र षट घूमैं सातौं कमल बिकासी।५।
ध्यान धुनी परकास दसा लै रूप सामने भासी।
माया मृत्यु काल औ जम गण चोर सकत नहिं खाँसी।
अंधे कहैं पंत निज पुर हो छूटि गई चौरासी।८।
पद:-
दे दिया है तन मन सतगुरु को सो भक्त भि बड़ा बहादुर हो।
अनहद सुनै पियै घट अमृत टपकै दामिनि बे बादर हो।
जगै नागिनि नचैं चक्कर खिलैं सब कमल सादर हो।
मिलै खुशबू मगन होवै फेरि कबहूँ न कादर हो।
मिलैं सुर मुनि लिपटि बोलैं हमारे तुम बिरादर हो।५।
ध्यान धुनि नूर लै होवै करैं सिय राम आदर हो।
कहैं अंधे जियति जानै बिजै की ओढ़ चादर हो।
छोड़ि तन जाय निजपुर को न फिर कबहूँ निरादर हो।८।
जैसे मरकट का सुत अपनै लपटत अपनी माता को।
जारी........