॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
अंधे कह हरि भजन बिन मिट्टी मिट्टी जाय॥
पद:-
मन तुम पापिन में जर दार। पापिन में सरदार।२।
पापिन में हुशियार। पापिन में चटकार।४।
पापिन में बलदार। पापिन में दलदार।६।
पापिन मं बटपार। पापिन में बरवार।८।
पापिन में घटवार। पापिन में मतवार।१०।
पापिन में खभुवार। अंधे कहैं शांति ह्वै बैठो जीव होय भवपार।१२।
दोहा:-
तन जर्जर खोखल भयो मास हांड़ गे सूख।
अंधे कह तबहूँ बनी सान मान की भूख॥
पद:-
मन मानै तस अर्थ छपावै। मन मानै तस कहि समुझावै।२।
अपनी काव्य में नेह लगावै। औरन की सुनि भेद बतावै।४।
कथा कीर्तन में जहँ जावै। देखा देखी सुनै सुनावै।६।
द्वैत भाव को नहिं बिलगावै। कहैं पार किमि पावै।८।
दोहा:-
सतगुरु के ढिग जाय के भजन कि बिधि ले सीख।
अंधे कह तन मन कसै मिलै नाम की भीख॥
पद:-
मिलै नाम की भीख लीख सम चोर जांय मर।१।
अंधे कहैं सुनाय जाय तब जियतै में तर।२।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हैं समुहे पर।३।
अन्त त्यागि तन चलै जाय चट बैठे निज घर।४।
पद:-
राम नाम के संग में जो भक्त है माता हुआ।
अंधे कहैं सो धन्य है पितु मातु का काता हुआ।
नागिनि जगा चक्कर नचा कमलन को उलटाता हुआ।
दस सै अरतालिस किसिम की गमकैं उड़वाता हुआ।
हर समै स्वरन से निकलतीं तन मन से हरषाता हुआ।५।
अनहद सुनै अमृत पियै सुर मुनिसे बतलाता हुआ।
ध्यान धुनि परकास लै बिधि लेख कटवाता हुआ।
राम सीता की छटा छबि सामने छाता हुआ।
सतगुरु से मारग जानि कै आनन्द का दाता हुआ।
उस की सर वरि को करै सब वस्तु का ज्ञाता हुआ।१०।
दीनता औ शांति गहि सरवत्र बिख्याता हुआ।
जल चर थल चर नभ चर जितने सब के मन भाता हुआ।
तन त्यागि गा निज धाम को फिरि जग से क्या नाता हुआ।
जिसने न जाना जियति में वह दोनों दिसि ताता हुआ।
अनमोल नर तन खो दिया आलस के फल खाता हुआ।
नर्क में जा कर गिरा पल भर न कल पाता हुआ।१६।
शेर:-
भजन में जाय पक्का ह्वै रिटायर जियत सो होवै।
कहैं अंधे न फिर कबहूँ गरभ में आय के रो़वै।१।
लूटेरे लूटते यारों तुम्हारे पास जो धन है।
कहैं अंधे बचै कैसे उन्हीं के संग में मन है।२।
करो सतगुरु पता पावो चन्द ही रोज़ का पन है।
अन्त में बोल नहिं फूटै बड़े बिकराल जम गन हैं।३।
पद:-
भक्तौं निज घर को है चलना।
चन्द रोज की पाही यहँ पर भूलि न वाही बनना।
सतगुरु से जप भेद जान कै बैठि एकांत में करना।
ध्यान धुनि परकास दसा लै बिधि का लिखा कतरना।
अमृत पियो सुनो घट अनहद सुर मुनि को पग धरना।५।
छबि सिंगार छटा क्या बांकी झाँकी सन्मुख ठरना।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि जिनके सब जग शरना।
जारी........