१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५)
पद:-
दुनियाँ बाइसकोप तमाशा।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो यह तन बारि बताशा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि कर्म शुभाशुभ नाशा।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम निरखौ पासा।
अनहद सुनो पियो घट अमृत सुर मुनि मिलैं हुलासा।५।
नागिनि जगै चक्र सब घूमैं सातौं कमल बिकासा।
भाँति भाँति की गमकैं निकलैं दोनो स्वरन से खासा।
अन्त छोड़ि तन राम धाम ले होय न गर्भ में बासा।
यह मोहिं शिव बजरंग बतायो भा पूरन विश्वासा।
अंधे कहैं जियति जो जानै सो सच्चा हरि दासा।१०।