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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१९)


पद:-

दै गारी जम डाटैं पीटैं फेरि बनावैं अरुण सिखा।

कहैं बोलिये कुकरूँ कूँ अब तेरे करम में यही लिखा।

सतगुरु किहे न हरि को सुमिरे अधरम का फल दिहो दिखा।

अंधे कहैं नर्क दुख खानि कि लीला ध्यान में जाय लखा।४।