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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२७)


पद:-

हँसती हँसती सँग में लसती हर दम जीवन चसती है।

खँसती खँसती गँसती कसती जाय नर्क में ठँसती है।

कुस्ती लड़ती पेंच से मरती चलत न नेकौ हस्ती है।

जुरती फुरती सुरती ऐसी अंधे कहैं न भसती है।४।