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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३२)


पद:-

मन हमको अब डेरवावो ना सतगुरु करि तुमका ठीक करब।

जो पाप बजार लगाये हो, चोरन को संग मिलाये हो,

सब को गहि करके पकरब।

परकाश नाम धुनि हो समाधि, मिटि जावै सारी चट उपाधि,

बिधि लेख के ऊपर लीक करब।

सन्मुख षट रूप सदा दरसै, सुर मुनि आवैं सिर कर परसैं,

अंधे कहैं या बिधि नीक करब।४।