१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३९)
पद:-
बसुदेव देवकी नन्द जसोदा नन्दन।
सतगुरु करि निरखौ जियति कटै भव फंदन॥
आनन्द कन्द बृज चन्द रहैं नित संगन।
सिंगार छटा छबि अद्भुद दुति है अंगन॥
क्या मन्द सुगन्ध समीर होत नहिं खन्डन।
ह्वै जावै बृज भरि मस्त बनाइत रंगन॥
मुरली की मधुरी तान अजब क्या ढंगन।
राधे जी बाँई तरफ़ खुशी कि उमंगन॥
दीनन के दीना नाथ प्रेम के बन्धन।
पतितन पर दाया करत हरत दुख द्वन्दन।५।
सुर मुनि सब जिनका करत रहत हैं बन्दन।
पारथ के संग में रन में हाँक्यो स्यन्दन॥
द्रुपदी का बनिगे चीर भई नहिं नंगन।
डरि गयो दुशानन सब तन भयो अपंगन॥
मीरा जी, ध्रू, प्रह्लाद नाम रंग रंगन।
तिन की हरि रच्छा करी करै को तंगन॥
अगणित पापी औ भक्त जीति जग जंगन।
श्री हरि पुर पहुँचे जाय गर्भ नहिं टंगन॥
चेतो नर नारी बनि के सच्चे मंगन।
तब तुम को मिलि जाय भीख नाम का कंगन।१०।
बाँटौ दीनन लखि बढ़ै कभी नहिं खंगन।
तप धन अनमोल है रतन न होवै भँगन॥
मन चोरन काबू करो उठाइ उछंगन।
अन्धे कहैं हर दम मगन बचन सहै व्यँगन।१२।