१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४२)
पद:-
है खुला हुआ दरबार दीन बनि जाय सो पावै भिच्छा।
अंधे शाह कहैं सतगुरु दै दीन हमै यह सिच्छा।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप जौन तब इच्छा।
अन्त त्यागि तन निजपुर पहुँचौ चढ़ि के हरि की रिच्छा।४।
पद:-
है खुला हुआ दरबार दीन बनि जाय सो पावै भिच्छा।
अंधे शाह कहैं सतगुरु दै दीन हमै यह सिच्छा।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप जौन तब इच्छा।
अन्त त्यागि तन निजपुर पहुँचौ चढ़ि के हरि की रिच्छा।४।