१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४७)
पद:-
सतगुरु के चरनन की रज का प्रेम से नैनन दे अंजन।
अंधे कहैं होय मन काबू चोरन का तब हो गंजन।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि सन्मुख भव के भय भंजन।
अंधे कहैं अंत निज पुर चलि बनि के बैठि गया सज्जन।४।
पद:-
सतगुरु के चरनन की रज का प्रेम से नैनन दे अंजन।
अंधे कहैं होय मन काबू चोरन का तब हो गंजन।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि सन्मुख भव के भय भंजन।
अंधे कहैं अंत निज पुर चलि बनि के बैठि गया सज्जन।४।