१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६४)
पद:-
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो। तब निज में निज को पहिचानो॥
परकास नाम धुनि लै सानो। सिय राम सामने में तानो॥
सुर मुनि संग नित हो बतलानो। अनहद सुनि अमृत पी पानो।६।
नागिनि का होवै हुसकानो। सब लोक घूमि फिर तन आनो॥
षट चक्कर का हो घुमरानो। सातौं कमलन का उलटानो॥
अन्धे कहैं जियतै लखि मानो। तब छूटै जग का चकरानो।१२।