१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६८)
पद:-
बर्त प्रार्थना औ त्यौहार। कर्म धर्म सारे ब्योहार।
बिना प्रेम के हैं बेकार। अन्धे कहैं मिलत नहि सार।
प्रेम नदी गंभीर अपार। सुर मुनि सब यह कह्यो पुकार।
मुक्ति भक्ति का यह दातार। नाम रूप का जानो तार।४।
पद:-
बर्त प्रार्थना औ त्यौहार। कर्म धर्म सारे ब्योहार।
बिना प्रेम के हैं बेकार। अन्धे कहैं मिलत नहि सार।
प्रेम नदी गंभीर अपार। सुर मुनि सब यह कह्यो पुकार।
मुक्ति भक्ति का यह दातार। नाम रूप का जानो तार।४।