१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८०)
पद:-
साठि घड़ी के बीच में काल पकड़ि ले आय।
अन्धे कह सुमिरन बिना नर्क देय पहुँचाय।
प्रभु भेजा जिस हेतु तोहि तौन करत तू नाहिं।
अन्धे कह बिरथा जनम शुभ कर्मन बिन जाहिं।४।
दोहा:-
मेरी मेरी कहत सब काया तेरी नाहिं।
अन्धे कह हरि भजन बिन काल कलेवा खाँहि॥