१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९१)
पद:-
नर तन पाय भज्यो नहि हरि को वाको जग चकराना होगा।
सतगुरु करै भजन बिधि जानै अवध जाय नहि आना होगा।
अमृत पियै सुनै घट बाजा मन्द मन्द मुशक्याना होगा।
नागिनि जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल खिलाना होगा।
नाम प्रकाश समाधि धुनी रं हर शै से सुनि पाना होगा।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाना होगा।६।
निर्भय औ निर्वैर एक रस बिधि का लिखा कटाना होगा।
सुर मुनि नित प्रति मिलन को आवैं प्रभु जस संग में गाना होगा।
भाँति भाँति के दिब्य पदारथ सुर शक्तिन गृह खाना होगा।
जौन लोक से तार आइहै वहाँ को ध्यान से जाना होगा।
ऐसा स्वागत कहत बनै नहिं प्रेम के लोर बहाना होगा।
अन्धे कहैं जियति जो जानै सो दोनो दिशि दाना होगा।१२।