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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१२६)


पद:-

पांच प्राण असली हैं पंच। तामें जीव बड़ा सरपंच।

भया आत्मा ठीक वजीर। सब के ऊपर सिय रघुबीर।

अन्धे कहैं जौन दे पीर। वा को सज़ा देत गंभीर।

सतगुरु करि सुमिरै धरि धीर। सो होवै जियतै में वीर।४।