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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३२)


पद:-

राम नाम का खाव अचार।

ना यह खट्टा ना यह कड़ुवा मीठा है मजेदार।

सबै मिठाई या में समाईं पावत अजब बहार।

जिन पायो तिन ही बतलायो हनुमत शिव दातार।४।

कितने अजर अमर ह्वै चेते पायो सत्य विचार।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम रहै निहार।

धुनि औ तेज दशा लय करतल कर्म भये जरि छार।

अन्धे कहैं जानि सतगुरु से मन को लेहु सम्हार।८।


चौपाई:-

जनमत मरत लखत सुनि जानत। तबहूँ मन यह नेक न मानत॥

सतगुरु करि जे सुमिरन ठानत। ते संघै लै घट में छानत॥

राह मिली तब ताना तानत। अन्धे कहैं बना अब बानत।३।