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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३४)


पद:-

अन्धे कहैं करो ख्याल सन्मुख त्रिभुवन भुवाल।

ऐसे हरि हैं दयाल पल में करि दें निहाल।

सतगुरु के पग विशाल चूमौ चलि हो कमाल।

खुलि है धुनि बिमल ताल छूटै सब जगत जाल।४।