१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३९)
पद:-
पढ़ै सुनै औ गुनै भागवत घट के पट खुलि जाते हैं।
नाम कि धुनि परकास दसा लै बिधि के लेख मिटाटे हैं।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाते हैं।
सुर मुनि मिलैं सुनै नित बाजा अमृत पी हर्षाते हैं।
नागिनि जगै चक्र षट घूमैं सातों कमल खिलाते हैं।५।
महकैं अद्भुद स्वरन ते निकलै बार बार मुस्क्याते हैं।
आप तरैं औरन को तारैं सच्चे भक्त कहाते हैं।
अन्त छोड़ि तन निज पुर राजैं आवागमन मिटाटे हैं।
अन्धे कहैं बचन सतगुरु के गहि ऐसे बनि जाते हैं।
तिनकी जै जै कार जियति में लोक वेद जस गाते हैं।१०।