१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१४४)
पद:-
वैराग बिना सन्यास बृथा श्री तुलसी दास कही बानी।
अन्धे कहैं भक्तों चेत करो नहीं अन्त में होवै हैरानी।
सतगुरु करि पकड़ौ नेम टेम मन प्रेम के संग होवै पानी।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सुधि बुधि वँह पर जावै सानी।४।
सुर मुनि सब भेटैं आशिष दै राखे निज कुल की कुल कानी।
सन्मुख में हर दम छाय जाँय श्री राम ब्रह्म औ महरानी।
तन छोड़ि अवध में पहुँचि जाव जो सदा एक रस रजधानी।
यह विहंग मार्ग कहलावत है कोटिन में जानै कोइ प्रानी।८।