१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१५२)
पद:-
सतगुरु सरनि जो जावै सुमिरन कि बिधि बतादें।
धुनि ध्यान तेज लय हो बिधि का लिखा मिटा दें।
सिंगार छबि छटा क्या षट रूप सन्मुख छा दें।
सुर मुनि के संग हरि जस नित प्रति उसे सुना दें।४।
अमृत पिलाय अनहद घट में मधुर बजा दें।
नागिनि जगा के सारे लोकन में भी घुमा दें।
चक्कर चला के कमलन एक तार से खिला दें।
अन्धे कहैं तन छूटै निज पुर में जा बिठा दें।८।