१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१५४)
पद:-
धनि धनि धनि काशी के बासी।
जहाँ रहत हर समय शिवा शिव जो सब सुख के रासी।
अन्त समय हर दहिने कान में राम मंत्र दें ठांसी।
दिब्य रूप ते चढ़ि सिंहासन जीव जात अविनासी।
हरि के धाम में पहुँचि गयो है छूटा दुख चौरासी।५।
मनिकर्णिका घाट पै सब को जारि देत करि रासी।
विष्णु क चरनोदक श्री गंगा बहती बारह मासी।
फूँकि भस्म फेंके सुर सरि में राखत नहीं जरा सी।
गंगा जल से ठौर धोय कै चलते छोड़ि उदासी।
अन्धे कहैं भजन बिन मुक्ती मिलत बसत जो काशी।१०।