१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१५९)
पद:-
जसोदा नन्द का लाला संवलिया है बड़ा प्यारा।
करो सतगुरु भजो देखो हर समय सामने ढारा।
रमा हर जा में है रहता और सब से रहै न्यारा।
नाम धुनि नूर लय पावो जौन बिधि रेख को फारा।४।
नागिनी चक्र नीरज सब जगैं महकैं एक तारा।
सुनौ अनहद छकौ अमृत देव मुनि संग खेलवारा।
त्यागि तन जाव निज पुर को मिटा भव जाल का भारा।
कहैं अन्धे महा सुख है मातु पितु नैन के तारा।८।