साईट में खोजें

१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७७)


पद:-

भजिये ररंकार महराज।

सतगुरु से सब भेद जानि के सारो अपना काज।

स्वयँ सिद्धि जो अजर अमर हैं सबके हैं सिरताज।

सब में व्यापक सब से न्यारे सब उनहीं का राज।४।

शाँति दीन ह्वै सुरति शब्द पै धरि के सुनहु अवाज।

सुर मुनि शक्ती सबै ध्यावते सन्मुख रहै विराज।

अन्धे कहैं चेति नर नारी काया डारौ माँज।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन निज पुर जावो भाज।८।