१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८६)
पद:-
जौने रूख के तरे जुड़ाते, उसी की साखैं काटि गिराते।
पाप ताप में हैं मन माते, अन्त छोड़ि तन नर्क को जाते।
हर दम हाय हाय चिल्लाते, दोनो दिसि ते ह्वै गे ताते।
हरि के भजन में जे लगि जाते, अन्धे कहैं वही सुख पाते।४।
पद:-
जौने रूख के तरे जुड़ाते, उसी की साखैं काटि गिराते।
पाप ताप में हैं मन माते, अन्त छोड़ि तन नर्क को जाते।
हर दम हाय हाय चिल्लाते, दोनो दिसि ते ह्वै गे ताते।
हरि के भजन में जे लगि जाते, अन्धे कहैं वही सुख पाते।४।