१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१९३)
पद:-
लकड़ी को घुन धुनि रहा कर दे छेद अनेक।
ऐसे हरि सुमिरन करो बनि जावो तब नेक।
सारी लकड़ी घुनि गई कैसी कीन्ही टेक।
अन्धे कह छुट्टी भई कौन सकै तेहि छेक।४।
पद:-
लकड़ी को घुन धुनि रहा कर दे छेद अनेक।
ऐसे हरि सुमिरन करो बनि जावो तब नेक।
सारी लकड़ी घुनि गई कैसी कीन्ही टेक।
अन्धे कह छुट्टी भई कौन सकै तेहि छेक।४।