२०३ ॥ श्री भीखा साहेब जी ॥
दोहा:-
भीख भिखारी को मिलै होय भिखारी दीन।
भीखा सतगुरु की सरनि नाम रूप ले चीन्ह॥
पद:-
सुरति निरत करै शब्द के ऊपर रूप सामने छाय रह्यो है।
भीखा कहैं बनत बस देखत नैनन नैन भिड़ाय रह्यो है।
नाम की धुनि परकास समाधी बिधि का लिखा मिटाय रह्यो है।
अन्त त्यागि तन सुनिये भक्तौं जीव नित्यपुर जाय रह्यो है।४।