२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२२४)
पद:-
रहस करत नन्द लाल, संग लीन्हे गोपी ग्वाल।
बाजा तहँ बाजत अति विशाल, राधे सब ऊपर करत ख्याल।
नाचत फिरि बैठत करि उछाल, दौरत झुकि झूमत हाल हाल।
छरकत हंसि हंसि फिर देत ताल, नभ ते सुर फेंकत सुमन माल।४।
जय जय जय करि करि निहाल, निरखत एकटक नहिं पलक हाल।
जलचर औ थलचर समुद्र ताल, मोहे अस ह्वै गे मनहु नाल।
बंशी की धुनि रसाल, ब्रह्माडौं में गई साल।
अंधे कहैं जमै ख्याल, सन्मुख त्रिभुवन भुवाल।८।
शेर:-
चला वक्त फिरि दस्त आता नहीं। बिना वक्त भा कोई ज्ञाता नहीं॥
सबी वस्तु का वक्त ही तो है दाता। कहैं अंधे चारों जुगों में बिख्याता॥