२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२३८)
पद:-
जेहि जाने की तय्यारी। सो सूरति लेय सँभारी।२
रंकार का तार है जारी। बस उसी पै करै सवारी॥
सुर संतन यही पुकारी। दोनो दिसि जै जै कारी॥
अंधे कहैं लगै न बारी। पहुँचे चट भवन मंझारी।८।
पद:-
जेहि जाने की तय्यारी। सो सूरति लेय सँभारी।२
रंकार का तार है जारी। बस उसी पै करै सवारी॥
सुर संतन यही पुकारी। दोनो दिसि जै जै कारी॥
अंधे कहैं लगै न बारी। पहुँचे चट भवन मंझारी।८।