२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२४६)
पद:-
जे जन करैं बास पराग।
जाप बिधि सतगुरु से जानै जाय मन तब जाग।
ध्यान धुनि परकास लै हो मिटै भव की आग।
राम सीता लखै सन्मुख देव मुनि संग लाग।
गंगा जमुना सरस्वती दें दिब्य पूड़ी साग।
अन्धे कहैं तन त्यागि कै चढ़ि यान निजपुर भाग।६।