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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२५४)


पद:-

श्री वशिष्ट जी विश्वामित्र को लव सतसंग का भेद बतायो।

राम नाम की र रंकार ध्वनि हर शै से सुनि सुख उपजायो।

भयो प्रकास दशा लय पहुँच्यो कर्म रेष पै मेष मरायो।

अनहद सुन्यो अमी रस चाख्यो सुर मुनि विहँसि विहसि उर लायो।४।

नागिनि जगी चक्र षट वेधे सातौं कमल तरंग उड़ायो।

राम सिया की झाँकी अद्भुद सन्मुख आय छटा छवि छायो।

अंधे कहैं धन्य ते प्राणी जिन जियतै करतल करि पायो।

अंत छोड़ि तन गे साकेतै आवा गमन ते छुट्टी पायो।८।