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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२५६)


पद:-

राम भजन बिन नर तन सूना।

अंधे कहैं मरा जिमि चूना।

सतगुरु करि सुमिरन जिन जाना वाको पकड़ि न पायो भूना।

अन्त छोड़ि तन गये अचलपुर गर्भ वास के खेल को भूना।४।


दोहा:-

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि दरशन कीर्तन पूजन से।

अंधे कहैं होय मुद मंगल प्रेम लगे जब तन मन से॥