२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५)
अर रर मित्रों कहौ कबीर।
कुँज गली घट में बनी घूमत राधे श्याम।
अन्धे कह जियतै लखौ अन्त मिलै निज धाम।
भला सतगुरु बिन पहुँचव मुशिकिल है।४।
अर रर मित्रों कहौ कबीर।
कुँज गली घट में बनी घूमत राधे श्याम।
अन्धे कह जियतै लखौ अन्त मिलै निज धाम।
भला सतगुरु बिन पहुँचव मुशिकिल है।४।