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२७२ ॥ श्री गोस्वामी तुलसी दास जी ॥


पद:-

हम से कौन बड़ो परिवारी।

कुरमा है बड़ो भारी।

सत स्वई पिता धर्म स्वइ भ्राता सरधा श्री महतारी।

सील बहिनि संतोष पुत्र है छिमा हमारी नारी।

आशा सासु त्रिशना है सारी लोभ मोह ससुरारी।५।

अहँकार स्वइ ससुर हमारे सो सब को फटकारी।

मन दिवान सूरति स्वइ राजा बुधि बड़ि मित्री भारी।

पाँचौं चोर बसत हैं तन में इन ही को डर भारी।

ज्ञान है गुरु विवेक है चेला रहत सदा हितकारी।

राम नाम की बसत नगरिया तुलसी पीतम प्यारी।१०।


पद:-

राम चरण अभिराम काम-प्रद तीरथ-राज विराजे।

शंकर-हृदय भगति भूतल पर प्रेम अक्षय-वट भ्राजे।

श्याम-वरण पद-पीठ अरुण-तल लसत विशद नख श्रेणी।

जिमि रवि सुता शारदा सुर सरि मिलि चलीं ललित तिरबेनी।४।

अंकुश कुलिश कमल ध्वज सुन्दर भँवर तरंग बिलासै।

मज्जहिं सुर सज्जन मुनि जन मन मुदित मनोहर बासै।

बिनु बिराग जप जोग यग्य ब्रत बिनु तप बिनु तन त्यागे।

सब सुख सुलभ सद्य तुलसी प्रभु-पद-प्रयाग अनुरागे।८।