॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
जाँय सब निज निज आसन धाय। उठैं तब राम लखन सीताय।२१४०।
संग रावण हनुमान सोहाँय। करैं नित की किरिया जो आंय॥
फेरि अस्नान मनै हर्षाय। आय के बैठैं आसन भाय॥
इष्ट अपने में सब चित लाय। प्रगट शिव गिरिजा होवैं जाय॥
राम ही लखैं और नहिं भाय। करैं परनाम श्री रघुराय॥
कहाँ किरपा कीन्हीं सुखदाय। कहैं हर सुनिये सब के राय।२१५०।
मूर्ति मैदान में मम पधराय। प्रगट हों लव कुश तव पुत्राय॥
बनावैं मन्दिर मन हर्षाय। श्याम रंग लव तुम सम सुखदाय॥
मातु के रंग के कुश हो भाय। होंय अति शूर बीर दोउ भाय॥
सकै को जीति जगत यश छाय। कहैं शिव उमा बचन हर्षाय॥
होंय अन्तर कैलाश की जाँय। होय जब प्रातकाल सुखदाय।२१६०।
करैं अस्नान सबै हर्षाय। दशानन कहै सुनो रघुराय॥
प्रतिष्ठा होय न देर लगाय। जौन वस्तू लागत जँह भाय॥
तौन हम लाये हैं सुखदाय। आप गठि बन्धन करि हर्षाय॥
मातु संग बैठो मन चित लाय। सुनैं यह बचन जगत सुखदाय॥
कहैं रावन से बचन सुनाय। करो गठि बन्धन तुम हर्षाय॥२१७०।
कृत्य तुम सम को जानत राय। जाँय जब अवध पुरी हम भाय॥
केश सरयू तट उतरैं जाय। तपस्वी भेष में नाऊ आय॥
हमैं गठि बन्धन नहीं कराय। आप सब जानत हौ बिधि भाय॥
तुम्हैं फिर कौन सकै समुझाय। बचन सुनि रावन शीश नवाय॥
करै गठि बन्धन मन हर्षाय। बैठि जाँय पूरब मुख रघुराय।२१८०।
दहिनि दिशि सीता रहीं सोहाय। दशानन पश्चिम मुख करि भाय॥
बैठिजाय तन मन प्रेम लगाय। रेणुका गंगा जी का भाय॥
दूध गोधृत काले तिल लाय। मिलाय के एक में मूर्ति बनाय॥
सहित अर्घा सुन्दर सुखदाय। वस्त्र एक शुकुल ओढ़ाय के भाय॥
पढ़ै फिरि वेद मंत्र हर्षाय। देय गंगा जल छींटा लाय।२१९०।
कहै प्रभु खोलौ मन हर्षाय। देंय प्रभु खोलि प्रेम से भाय॥
सहित अर्घा शिव मूर्ति सोहाय। श्याम रंग चमकीली सुखदाय॥
सहित अर्घा पत्थर ह्वै जाय। मूर्ति यकइस अंगुल सुखदाय॥
नाम रामेश्वर राम सुनाय। करावै बिधिवत कृत्य को भाय॥
तीन दिन में धुनि वेद सुनाय। धूम तहँ जय जय कार कि भाय।२२००।
फूल तहँ बरसैं सुर हर्षाय। करैं पैकरमा श्री रघुराय॥
सहित सीता के मन हर्षाय। फेरि दंडवत करैं शिरनाय॥
बैठि जाँय कर जोरे सुखदाय। लखन रावन सब कटकहु भाय॥
करै पैकरमा मन हर्षाय। दंडवत करि सब बैठैं भाय॥
प्रेम से तन मन अति पुलकाय। कहैं श्री राम दशानन राय।२२१०।
आप पण्डित पूरन सुखदाय। जौन माँगौ सो देवैं भाय॥
हमारे ईश को तुम पधराय। कहै रावन सुनिये सुखदाय॥
आपु की किरपा रहै सदाय। पुत्र धन ग्रह परिवार रजाय॥
सबै मिथ्या प्रभु तुम बिन आय। जाल यह महा कठिन रघुराय॥
आप जेहि चाहैं सो बचि जाय। यही दीजै माँगे सुखदाय।२२२०।
मेरा परिवार तरै हर्षाय। मेरा परिवार तरै हर्षाय॥
मरै जो समर भूमि में आय। जाँय बैकुण्ठ मनै हर्षाय॥
हमैं औ कुम्भकर्ण को भाय। कृपा निधि सुधि न दियो बिसराय॥
याद द्वापर की राख्यौ भाय। जन्मिहैं हम दोनों तहँ आय॥
रहस लीला में परिकै भाय। बिसरि न जायो श्री सुखदाय।२२३०।
सुनैं यह बैन राम रघुराय। प्रेम के भरे हृदय हर्षाय॥
जारी........