॥ अथ जय माल वर्णन॥
जारी........
बड़ा अभिमानी रावण राय। दया को लंक से दीन भगाय॥
कहैं अंगद हम जाय के भाय। चूर मद करिहौं प्रभु किरपाय॥
चलैं अंगद रावण गृह धाय। जाय कर पहुँचि जाय हर्षाय॥
बैठि तहँ बड़े बड़े योधाय। देखि के बोलि सकैं नहिं भाय॥
लगा दरबार कसा कस भाय। बीच में अंगद उड़ि के जाय।२३४०।
दशानन के समुहै पर जाय। खड़े भे नैन में नैन मिलाय॥
कहै रावण तुम कहाँ ते आय। बीच दरबार खड़े न डेराय॥
बिना मम हुकुम न कोई आय। बड़े ताजुब की बात है भाय॥
रोकि नहिं सका तुम्हैं कोइ भाय। पहरुआ सोय गये का भाय॥
खाल उऩ सब की लेंव खिंचाय। अग्नि में जियतै देंव फुँकाय।२३५०।
कहैं अंगद सुनिये बचनाय। नीति को त्यागि के को फल पाय॥
करै राजा अनीति जब भाय। प्रजा के हवा लगै बौराय॥
जाय आँखिन में माड़ा छाय। प्रजा राजा एकै सम भाय॥
दूत हम रामचन्द्र के भाय। संदेशा कहने के हित आय॥
कहै रावन कहिये का लाय। संदेशा हम से कहौ सुनाय।२३६०।
कहैं अंगद तन मन हर्षाय। नीति की बातैं अति सुखदाय॥
सुनै औ हंसे कहै क्या भाय। जाति बानर की हमैं सिखाय॥
न मानै एकौ बचन को भाय। जाँय अंगद तब अति रिसिआय॥
क्रोध ते बदन में लाली छाय। नेत्र अति अरुण कहा नहिं जाय॥
कहैं रावन ते बचन सुनाय। न मानै काल गयो नियराय।२३७०।
राम से कौन लड़ै रण जाय। नाम परताप देखावैं राय॥
काल के काल अकाल कहाय। सर्व व्यापक सुर मुनि गुन गाय॥
चरण दाहिन मैं रोपौं भाय। हटावै जो कोइ योधा आय॥
राम फिरि जाँय अवध को राय। हारि मैं जाऊँ जानकी माय॥
भिड़ैं तहँ शूर वीर बहु आय। टरै पग नहीं चलैं खिसिआय।२३८०।
चलै तब मेघनाद उठि धाय। उठावै नेक न जुम्मस खाय॥
उठै रावन तब अति रिसिआय। गिरैं सब मुकुट धरनि पर आय॥
उठाय के अंगद देंय चलाय। होत परकाश बाँण सम जाँय॥
देखि कै कटक ऋक्ष कपि भाय। कहैं क्या आवत है यह धाय॥
अग्नि सम बरत बहुत लहराय। बड़ी अद्भुत यह लीला भाय।२३९०।
पवन सुत कहैं बचन हर्षाय। दशानन के क्रीटि हैं भाय॥
बालि सुत पग रोप्यौ है भाय। उठाय न सकै कोई योधाय॥
उठा रावन तब क्रोध में भाय। मुकुटि सब गिरे धरनि पर जाय॥
दशौं अंगद ने लीन उठाय। फेंकि दीन्हें कसि जोर से भाय॥
पवन ने हाथ में लीन्हों धाय। पास प्रभु के आवत हैं भाय।२४००।
आय जब पास गये नियराय। पवन सुत दोउ हाथन लियो धाय॥
धरयो श्री राम ब्रह्म ढिग जाय। उजेरिया छाय मणिन की भाय॥
कहैं अंगद रावण से राय। भयो अति अशकुन तुम्हरो आय॥
राज अब गई हाथ से भाय। दशौं शिर सूने ह्वै गये राय॥
भयो यह अनुभव हम को राय। विभीषण राज्य करैं हर्षाय।२४१०।
गहें मम चरण न उबरौ भाय। परौ प्रभु के चरनन तुम आय।
माफ़ सब खता करैं सुखदाय। दीन की सदा सुनत रघुराय॥
बचन अंगद के सुनि कै भाय। बैठि जाय रावण शिर निहुराय॥
उठैं बहु निश्चर रिसि कर भाय। लपटि अंगद के तन में जाँय॥
बदन अंगद का नहीं देखाय।चहुँ दिशि ते बहु लपटैं आय।२४२०।
उड़ैं सब को लै अंगद भाय। जाँय एक योजन ऊपर आय॥
झिटकि दें सब तन कसि के भाय। गिरैं सब फटा फट मरि जाँय॥
जारी........