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२८५ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥


चौपाई:-

दुष्टन की महिमा दुखदाई। बहु बिधि वेद पुरानन गाई॥

सतगुरु से लै नाम को ध्याई। दीन बनै सो बचि कै जाई॥

अपने को जो देव मिटाई। वा के पास द्वैत नहिं आई॥

सत्य प्रेम दाया सुखदाई। अंधे कहैं जियति तरि जाई।४।


दोहा:-

इस बिधि को जो जान ले वही भक्त है सूर।

अंधे कह हनुमान हर करैं सर्व दुख दूर॥