२८८ ॥ श्री जिद्दीशाह जी ॥
(अपढ़, मुकाम बिसवां सीतापुर,
श्री चौपान शाह जी के मुरीद)
पद:-
गूँजि रही है राम नाम धुनि र रंकार पहिचानो।
ध्यान ज्ञान मुक्ती औ भक्ती इसी से मिलती जानो।
षट् झाँकी सन्मुख रहैं हरदम मन्द मन्द मुस्क्यानों।
सुर-मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद अमृत का हो पानो।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलानो।
जिद्दी कहैं अन्त हो निजपुर छूटै जग चकरानो।६।
बार्तिक:-
पहले बिसवां कमान शहर कहा जाता था। यहां धनुष बनते थे और चौपान शहीद की मजार पर शाम को रख देते थे। जो धनुष वै चढ़ा देते थे उसे जो आदमी धरता था कोई नहीं जीतता था। बिसवां में पहलवान बड़े बड़े हो गये। विश्वनाथ का मंदिर है। मुती मुसलमानों की राज्य भई तब नीचे चली गई। कई हाथ गहराई में है। करीब पक्का ताल है। उसे कोई पानी से भर नहीं पाता है। जो पहलवान वहां जाकर दंडवति करता है उससे कहीं का पहलवान हो हार जाता था। चौपान शहीद को पांच सौ बर्ष हो गये शरीर छोड़े। जहां मजार है वहां बहुत कबरैं और इमली के पेड़ हैं।
पांच हजार बर्ष से कुछ ऊपर हो गया बिसवां के इधर किनारे पर चन्द्रभागा नदी थी जिसे अब चौका नदी कहते हैं। करीब एक साधू की झोपड़ी थी। एक चेला था। कहा 'महाराज जी! नदी जोर से काट रही है, झोपड़ी कट जायगी।' बाबा ने कहा 'फिर हट कर बन जायगी।' तो चेला ने कहा 'महाराज! इसे बचा दो तो ठीक रहे।' बाबा ने कहा। 'हमारा लौका का कमंडल भर ले, और जा, जहाँ तू छोड़ैगा वहीं चली जायंगी।' चेला ने कमंडल भर लिया और सात कोस पर जल छोड़ आय़ा। तब चन्द्रभागा सूख गईं। नीचे नीचे पानी वहाँ चला गया, बहनें लगीं। उसका आसार हमारे गांव से एक मील है, वहां मिट्टी काली और बालू है। कुवां लोध को देते थे, तो साखू के लकड़ी का पुल आगे बनता था। एक हजार बर्ष पर सड़ता था। वह खोदने पर निकलने लगा सड़ गया था। यह बात ठाकुर दुर्गासिंह ने हम से बताया था। डिकोलिया के। कमान शहर नाम और धनुष बजते थे। विश्वनाथ मंदिर पहलवानौं का हाल। हम शंकर जी के मंदिर में गये थे। उस गड़हा में पतला बांस १० हाथ का छोड़ा, पता न चला, उसका पूजन होता है और पास ही उनके नाम से कोई बड़े धनी ने मंदिर बनवा दिया है। चौपान शहीद का मंदिर छोटा बना है।