२९९ ॥ श्री तनमन शाह जी॥
(अपढ़, अजर अमर; मुकाम बदायूँ)
पद:-
मुक्ति भक्ति औ ज्ञान ध्यान सब दया धर्म से मिलते।
नाम कि धुनि परकास समाधी रूप सामने खिलते।
सतगुरु करौ जुटौ तन मन से कर्म कि रेखा छिलते।
सुर शक्ती सब दर्शन देवैं मानै तुमको दिल से।४।
पांचौ चोर औ माया माता तब फिर तुमको ढिलते।
नर नारी सब जीव जगत के तब तुम को फिरि हिलते।
तन मन शाह कि बानी भक्तौ समझौ चक्षु के तिलते।
भव सागर तब पार जाव ह्वै छूटौ जग किलकिलते।८।
दोहा:-
बारह बर्ष का तन भया अजर अमर सुखदाय।
भूख प्यास ब्यापै नहीं जाड़ घाम बिलगाय॥
निद्रा देवी चुप भईं कभी न आवैं पास।
षट् झांकी संग में रहैं हम हैं उनके पास॥
सतगुरु के परताप से हमें भया संतोष।
सुरति शब्द में लगि गई मिला नाम का कोस॥
प्रेम भाव एकतार हो अटल होय विश्वास।
नैन श्रवन जियतै खुलैं दोनों दिशि ते पास॥
सब नीचन में नीच हम सब दीनन में दीन।
तन मन शाह कहैं सुनौ शान्ति की पदवी लीन।५।
बार्तिक:-
गुड़ की मई बहुत खार और खराब होतीं है। बिना निकाले गुड़ में स्वाद नहीं आता। मन का मैल द्वैत है। जब मन के संग रहेगा तब शुभ काम नहीं करने देगा॥
दोहा:-
गुड़ की साफ़ निकालिये तब गुड़ होवै साफ़।
मन का मैल निकालिये तब मन होवै साफ़।
सब का भला जौन कोइ चाहत सोई भला कहावै।
अन्त छाड़ि तन चढ़ि विमान पर निज घर बैठक पावै।४।